tag:blogger.com,1999:blog-25874580882715736372024-02-08T03:53:01.747+05:30शब्द कलश संगीता स्वरुप ( गीत )http://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-2587458088271573637.post-22988754426002129642013-01-14T16:03:00.001+05:302013-01-14T16:07:43.745+05:30जिसके हम मामा हैं / शरद जोशी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div id="main" style="background-attachment: scroll; background-color: white; background-image: none; background-position: 0% 50%; background-repeat: repeat repeat; font-family: 'Arial Unicode MS', mangal; line-height: 22px; padding: 0pt 1px; width: 640px;">
<span style="color: blue; font-size: large;">एक सज्जन बनारस पहुँचे। स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आता।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">‘‘मामाजी ! मामाजी !’’—लड़के ने लपक कर चरण छूए।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">वे पहताने नहीं। बोले—‘‘तुम कौन ?’’</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">‘‘मैं मुन्ना। आप पहचाने नहीं मुझे ?’’</span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">‘‘मुन्ना ?’’ वे सोचने लगे।</span></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">‘‘हाँ, मुन्ना। भूल गये आप मामाजी ! खैर, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गये।’’</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">‘‘तुम यहां कैसे ?’’</span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">‘‘मैं आजकल यहीं हूँ।’’</span></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">‘‘अच्छा।’’</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">‘‘हां।’’</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">मामाजी अपने भानजे के साथ बनारस घूमने लगे। चलो, कोई साथ तो मिला। कभी इस मंदिर, कभी उस मंदिर।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">फिर पहुँचे गंगाघाट। सोचा, नहा लें।</span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">‘‘मुन्ना, नहा लें ?’’</span></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">‘‘जरूर नहाइए मामाजी ! बनारस आये हैं और नहाएंगे नहीं, यह कैसे हो सकता है ?’’</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">मामाजी ने गंगा में डुबकी लगाई। हर-हर गंगे।</span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">बाहर निकले तो सामान गायब, कपड़े गायब ! लड़का...मुन्ना भी गायब !</span></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">‘‘मुन्ना...ए मुन्ना !’’</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">मगर मुन्ना वहां हो तो मिले। वे तौलिया लपेट कर खड़े हैं।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">‘‘क्यों भाई साहब, आपने मुन्ना को देखा है ?’’</span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">‘‘कौन मुन्ना ?’’</span></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">‘‘वही जिसके हम मामा हैं।’’</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">‘‘मैं समझा नहीं।’’</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">‘‘अरे, हम जिसके मामा हैं वो मुन्ना।’’</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">वे तौलिया लपेटे यहां से वहां दौड़ते रहे। मुन्ना नहीं मिला।</span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के नाते हमारी यही स्थिति है मित्रो ! चुनाव के मौसम में कोई आता है और हमारे चरणों में गिर जाता है। मुझे नहीं पहचाना मैं चुनाव का उम्मीदवार। होनेवाला एम.पी.। मुझे नहीं पहचाना ? आप प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी लगाते हैं। बाहर निकलने पर आप देखते हैं कि वह शख्स जो कल आपके चरण छूता था, आपका वोट लेकर गायब हो गया। वोटों की पूरी पेटी लेकर भाग गया।</span></span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हैं। सबसे पूछ रहे हैं—क्यों साहब, वह कहीं आपको नज़र आया ? अरे वही, जिसके हम वोटर हैं। वही, जिसके हम मामा हैं।</span></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">पांच साल इसी तरह तौलिया लपेटे, घाट पर खड़े बीत जाते हैं।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<br /></div>
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संगीता स्वरुप ( गीत )http://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.com19tag:blogger.com,1999:blog-2587458088271573637.post-8647225432874611312008-10-20T15:10:00.003+05:302008-10-23T13:43:41.393+05:30बेवफा<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhv3FKUl7LqFfFN-u8lnyxN51BxbrTSqyDa6kjH1LLl8JKhrFYWWR_fYSkgfIdSp1-kF9BLWYZaxvVlYE8KzewDjleUtxMIIfI3A1cEfwfPW0ipciXtiVxTWNeyVPtdnR_ClOhzaCQu5vE/s1600-h/bewafa.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5260257260040693890" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhv3FKUl7LqFfFN-u8lnyxN51BxbrTSqyDa6kjH1LLl8JKhrFYWWR_fYSkgfIdSp1-kF9BLWYZaxvVlYE8KzewDjleUtxMIIfI3A1cEfwfPW0ipciXtiVxTWNeyVPtdnR_ClOhzaCQu5vE/s320/bewafa.bmp" border="0" /></a><br /><div>आज मैं बहुत खुश हूँ। इतने अरसे बाद आज मैंने उसे देखा है अपने परिवार के साथ ,पूर्ण रूप से समर्पित एक गरिमामय नारी के रूप में।<br />ओह ! आज मैं सोचता हूँ कि मैंने क्या खोया और क्या पाया ? ज़िन्दगी के इस मुकाम पर आ कर जब सब स्थिर सा हो गया है , सब कुछ एक निश्चित<br />ढर्रे पर चल रहा है तो याद आते हैं वो क्षण जब मैं हताश था .वो दिन संघर्ष के थे , निराशा के थे । ज़रा सी सहानुभूति भी मुझे अपनी ओर खींच लेती थी और मैं हर उस दिशा में मुड जाता था जहाँ कोई मेरी पीड़ा समझने का दावा करता था।<br />वही वो वक्त था जब मैं उसकी ओर आकर्षित हुआ। उसने मुझे बहुत हिम्मत दी थी , बहुत सहारा दिया था यहाँ तक कि टूट कर चाहा था मुझे और मैंने भी बेपनाह मुहब्बत की थी पर हमारे रिश्ते का न कोई भविष्य था न ही कोई मंजिल । दोनों ही अपने दायरे में बंधे थे क्यों कि वो विवाहिता थी।<br />मैं इसी ऊहापोह में अपने भविष्य की तलाश में चला आया बहुत दूर , वापस न लौटने के लिए , ये सोच कर कि यदि मैं उसे खुश देखना चाहता हूँ तो मुझे उसकी ज़िन्दगी से दूर जाना ही होगा । और मैं अपने माथे पर बेवफा का दाग ले कर चला आया था उसकी ज़िन्दगी से दूर बहुत दूर.............</div>संगीता स्वरुप ( गीत )http://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.com30tag:blogger.com,1999:blog-2587458088271573637.post-36271585123265280452008-10-16T12:33:00.003+05:302008-10-23T11:01:50.911+05:30टाइम पास<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6MuHI2ZEKJpp9OxzJp50zCrItgkE6qg-YMScBeSQm2PPCJAPf3bkfFTimfywxN2mt9sU4G2o7dx2oN7FAFZN3aVTvglNZTdKsD_Nc-6lcjc6Vff4HdFbwHGbnC9MqNkr3gR3OlHHTLIA/s1600-h/time+pass.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5260217398443110242" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 239px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6MuHI2ZEKJpp9OxzJp50zCrItgkE6qg-YMScBeSQm2PPCJAPf3bkfFTimfywxN2mt9sU4G2o7dx2oN7FAFZN3aVTvglNZTdKsD_Nc-6lcjc6Vff4HdFbwHGbnC9MqNkr3gR3OlHHTLIA/s320/time+pass.jpg" border="0" /></a><br /><div>वो हवा के झोंके की तरह मेरी ज़िन्दगी में आया और उतने ही वेग से मेरे सारे जज्बातों को साथ उड़ा<br /><span class="">ले गया । एक जान होने की कसम खाई थी , पर कहाँ निभा पाया वो अपने वादे ? वो वक्त था </span><br /><span class="">जब वो अपने जीवन में भविष्य के लिए संघर्ष कर रहा था , अपनी सारी परेशानियां मुझसे बाँट लिया करता था । आज लगता है कि बस थोड़ा वक्त गुजारने आया था मेरे पास । आज उसके पास नाम है , काम है और पैसा भी है । अपने भविष्य की तलाश में उसने मुझे छोड़ दिया ।</span><br /><span class="">शायद मैं उसका टाइम - पास थी.</span><br /><span class=""></span></div>संगीता स्वरुप ( गीत )http://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2587458088271573637.post-66027328841731403722008-10-07T16:01:00.000+05:302008-10-07T16:13:33.148+05:30मानसिकतामैं कक्षा में प्रथम आई हूँ , माँ ! बिटिया खुशी से चिल्लाती घर में घुसी । माँ ने कहा -" अव्वल आई है तो क्या? पराये घर जा कर चूल्हा ही तो झोंकना है तुझे , इतना चिल्ला क्यों रही है ? " माँ की बात बेटी के दिल को लग गई । उसने ठान लिया कि वो चूल्हा तो नही झोंकेगी । वक्त गुज़रा । आज वो भारतीय प्रशासनिक सेवा में है । माँ गर्व से बताती है कि मेरी बेटी सरकारी अफसर है। एक दिन पडोसिन ने पूछ लिया कि - "बेटी को घर का काम भी आता है ? खाना बना लेती है ? " माँ ने अकड़ कर कहा -"मेरी बेटी बहुत बड़ी सरकारी अफसर है , वो चूल्हा क्यों झोंकेगी ? "संगीता स्वरुप ( गीत )http://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2587458088271573637.post-62925330437135231672008-10-06T15:18:00.000+05:302008-10-06T15:53:23.340+05:30समझ का फेर .कब तक वो इस छोटे से कमरे में अकेली बैठे ? देखूं बाहर क्या हो रहा है , यही सोच कर वो रसोई में पहुँची . अचानक उसके हाथ से काँच का गिलास गिर कर टूट गया . बहू कि कर्कश आवाज़ आई - क्या हुआ ? वो सहमी सी खड़ी थी यही सोचती हुई कि पहले बहू आएगी फिर बेटा . यही हुआ . बहू आग्नेय नेत्रों से देख रही थी . बेटा झुंझला के बोला - "माँ ! तुमको कितनी बार कहा है कि अपने कमरे में रहा करो . कुछ ना कुछ तोड़ - फोड़ करती रहती हो , ये नही कि आराम से कमरे में बैठो . पर तुमको कुछ समझ आए तब ना. " बचपन में ना जाने क्या क्या तोड़ दिया करता था . जब ये बोलना भी नही सीखा था तब इसकी बात मैं इशारे से समझ जाती थी , आज कह रहा है कि मैं इसकी बात समझती नही .यह सोचते सोचते उसके कदम अपने कमरे की ओर बढ़ गये .संगीता स्वरुप ( गीत )http://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-2587458088271573637.post-47769445908501581232008-10-06T15:11:00.000+05:302008-10-06T15:16:25.058+05:30आख़िर किसे?सुबह का समय। सब को काम पर जाने कि जल्दी है. दौड़ते - भागते लोकल ट्रेन पर चढ़ते हैं. ट्रेन ज़रा सा आगे बढ़ी कि भयानक विस्फोट हुआ और ना जाने कितने माँस के लोथडे उड़ते हुए ज़मीन पर आ लगे. देखने वाले कुछ समझे कुछ नही. नसीर का पूरा परिवार एक ही फॅक्टरी में काम पर जाता है. बस माँ घर पर रहती है . इस धमाके में उसके परिवार के चार लोग मारे गये. उसके पिता , दोनो भाई और वो खुद. आख़िर ये आतंकवादी किसे मारना चाहते हैं. आख़िर किसे?संगीता स्वरुप ( गीत )http://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2587458088271573637.post-53108775425033786552008-10-06T15:02:00.000+05:302008-10-06T15:09:30.414+05:30मनहूस कौन ?दिसम्बर का महीना और दिल्ली की सर्दी। सुबह का वक्त , ठिठुरन इतनी कि हड्डियाँ तक कंपकंपा <br />जाती थीं । लाल बत्ती पर एक बड़ी सी गाड़ी आ कर रुकी । एक बालक चीथड़े पहने सर्दी से ठिठुरता आगे आया और गुहार लगाई - "माई ! कुछ पैसे दो । बहुत सर्दी है , चाय पिऊंगा ।" मेमसाहब ने बुरा सा मुंह बनाया और हिकारत कि नज़र से देख कर बोलीं - " आज का दिन बहुत मनहूस जायेगा । ऐसी शक्ल ले कर सामने आ जाते हैं कि सारा दिन ही ख़राब हो जाता है ।" यह कह कर गाड़ी में बैठे अपने कुत्ते को प्यार से बिस्कुट खिलाने लगीं.संगीता स्वरुप ( गीत )http://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.com10